सनम Poetry (page 2)

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़

वली उज़लत

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़

वली उज़लत

दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन

वली मोहम्मद वली

सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो

वली मोहम्मद वली

मुफ़्लिसी सब बहार खोती है

वली मोहम्मद वली

जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ

वली मोहम्मद वली

इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है

वली मोहम्मद वली

हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

वहीद अख़्तर

ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता

वहाब दानिश

अब कू-ए-सनम चार क़दम ही का सफ़र है

उमर फ़ारूक़

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

दिल के भूले हुए अफ़्साने बहुत याद आए

तनवीर अहमद अल्वी

हुस्न और इश्क़ दोनों में तफ़रीक़ है पर इन्हीं दोनों पे मेरा ईमान है

ताबिश कानपुरी

तेरी सूरत निगाहों में फिरती रहे इश्क़ तेरा सताए तो मैं क्या करूँ

ताबिश कानपुरी

बनाया है शहकार यूँ तेरे ग़म ने

सय्यद सग़ीर सफ़ी

बढ़ा तन्हाई में एहसास-ए-ग़म आहिस्ता आहिस्ता

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

क्लर्क

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

मसर्रत में भी है पिन्हाँ अलम यूँ भी है और यूँ भी

सय्यद हामिद

है किस के लिए लुत्फ़ ग़ज़ब किस के लिए है

सय्यद अमीन अशरफ़

फ़स्ल-ए-गुल क्या कर गई आशुफ़्ता सामानों के साथ

सुरूर बाराबंकवी

शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया

सुदर्शन फ़ाकिर

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं

सुदर्शन फ़ाकिर

दुश्मनी में ही सही वो ये करम करता रहा

सुभाष पाठक ज़िया

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