सनम Poetry (page 7)

चंद मुद्दत को फिराक़-ए-सनम-ओ-दैर तो है

इंशा अल्लाह ख़ान

टुक आँख मिलाते ही किया काम हमारा

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

अच्छा जो ख़फ़ा हम से हो तुम ऐ सनम अच्छा

इंशा अल्लाह ख़ान

आने अटक अटक के लगी साँस रात से

इंशा अल्लाह ख़ान

यूँ वफ़ा के सारे निभाओ ग़म कि फ़रेब में भी यक़ीन हो

इन्दिरा वर्मा

कुछ बला और कुछ सितम ही सही

इन्दिरा वर्मा

दिल से अपने ख़ुद-ब-ख़ुद कुछ पूछिए मेरे लिए

इन्दिरा वर्मा

रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में

इंद्र सराज़ी

जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है

इम्दाद इमाम असर

तारे गिनते रात कटती ही नहीं आती है नींद

इमदाद अली बहर

मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा

इमदाद अली बहर

जाते है ख़ानक़ाह से वाइज़ सलाम है

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

चुनने न दिया एक मुझे लाख झड़े फूल

इमदाद अली बहर

बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का

इमदाद अली बहर

बशर रोज़-ए-अज़ल से शेफ़्ता है शान-ओ-शौकत का

इमदाद अली बहर

तकल्लुम ही फ़क़त है उस सनम का

इमाम बख़्श नासिख़

रिफ़अत कभी किसी की गवारा यहाँ नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

कौन सा तन है कि मिस्ल-ए-रूह इस में तू नहीं

इमाम बख़्श नासिख़

नशात-ए-नौ की तलब है न ताज़ा ग़म का जिगर

इकराम आज़म

जब झूट रावियों के क़लम बोलने लगे

हुसैन ताज रिज़वी

हारून की आवाज़

हिमायत अली शाएर

कू-ए-जानाँ में अदा देखिए दीवानों की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

महदूद-निगाही के सनम टूट रहे हैं

हयात वारसी

वहदहू-ला-शरीक की है क़सम

हातिम अली मेहर

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

हातिम अली मेहर

इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

हातिम अली मेहर

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