शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
अफ़सोस कि कुछ फूल तुम्हारे भी मिले हैं
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याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
दिल है बीमार क्या करे कोई
तू ही बता दे कैसे काटूँ
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
लोग कहते रहे क़रीब है वो
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
आप पर जब से तबीअत आई