याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
हाथ उठाए हैं जब दुआ के लिए
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आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
दिल है बीमार क्या करे कोई
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
तू ही बता दे कैसे काटूँ
आप पर जब से तबीअत आई
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का