याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
छुट गया हाथ से कब जाम मुझे याद नहीं
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शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या