हुस्न जिस हाल में नज़र आया
हम ने उस हाल में परस्तिश की
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याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
तू ही बता दे कैसे काटूँ
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
आप पर जब से तबीअत आई