बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
तलब हो गर तो वीराने बहुत हैं
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मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
कारवाँ तो निकल गया कोसों
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा