कारवाँ तो निकल गया कोसों
राह भटके हुए कहाँ जाएँ
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ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
मुझ को सुकूँ की चैन की पज़मुर्दगी से क्या
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
आप पर जब से तबीअत आई
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
लोग कहते रहे क़रीब है वो