कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
कितने ही फूल रह गए बाक़ी
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याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थी
साग़र-ओ-जाम को छलकाओ कि कुछ रात कटे
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
दूसरों को फ़रेब दे दे कर