उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थी
पहुँचेगी बू-ए-नाज़ मिरे पैरहन से दूर
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ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में
दिल है बीमार क्या करे कोई
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
साफ़ कहिए कि प्यार करते हैं
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
आप पर जब से तबीअत आई