मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
मातम-कदा जो गोर-ए-ग़रीबाँ हुआ तो क्या
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तिरे नाज़-ओ-अदा को तेरे दीवाने समझते हैं
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
लोग कहते रहे क़रीब है वो
आप पर जब से तबीअत आई
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
मैं ने तन्हाइयों के लम्हों में