दर्द-ए-दिल ने ली न थी करवट अभी
उन के माथे पे पसीना आ गया
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तू ही बता दे कैसे काटूँ
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
मरने के बअ'द कोई पशेमाँ हुआ तो क्या
कारवाँ तो निकल गया कोसों
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
आज फिर उन से मुलाक़ात पे रोना आया
तिरी जुस्तुजू तिरी आरज़ू मुझे काम तेरे ही काम से
दिल है बीमार क्या करे कोई
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं