तिरी जवान उमंगों को हो गया है क्या
डरी डरी सी मोहब्बत मुझे पसंद नहीं
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जुनूँ के कैफ़-ओ-कम से आगही तुझ को नहीं नासेह
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए
आप पर जब से तबीअत आई
अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना
हुस्न जिस हाल में नज़र आया
कारवाँ तो निकल गया कोसों
वो तिरी ज़ुल्फ़ का साया हो कि आग़ोश तिरा
रुमूज़-ए-इश्क़ की गहराइयाँ सलामत हैं
ये रात यूँही बसर हो गई तो क्या होगा
याद इतना है कि मैं होश गँवा बैठा था