अहल-ए-दिल ने किए तामीर हक़ीक़त के सुतूँ
अहल-ए-दुनिया को रिवायात पे रोना आया
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(860) Peoples Rate This
तू ही बता दे कैसे काटूँ
कितने ही फूल चुन लिए मैं ने
शिकवा नहीं दुनिया के सनम-हा-ए-गिराँ का
बुरी तक़दीर के रोने से हासिल
याद आए हैं उफ़ गुनह क्या क्या
दूसरों को फ़रेब दे दे कर
मंज़िल जिसे समझते थे यारान-ए-क़ाफ़िला
लोग कहते रहे क़रीब है वो
आप पर जब से तबीअत आई
वाए नाकामी-ए-क़िस्मत कि भँवर से बच कर
अक़्ल ने तर्क-ए-तअल्लुक़ को ग़नीमत जाना