ख़ाक में मुझ को मिला के वो सनम कहता है
अपने अल्लाह से जा कर मिरी फ़रियाद करो
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नहीं है हाजियों को मय-कशी की कैफ़िय्यत
अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया
फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी
आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा
ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल
जब उस बे-मेहर को ऐ जज़्ब-ए-दिल कुछ जोश आता है
ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती से जो दम घबराया
आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार
अहवाल-ए-मज़ाहिब से ये साबित हुआ हम को
चश्म वा रह गई देखा जो तिलिस्मात-ए-जहाँ
वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया
दश्त-ए-जुनूँ में आ गईं आँखें जो उन की याद