ख़ुद-रफ़्तगी है चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई
दरवाज़ा खुल गया तो मैं घर से निकल गया
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(802) Peoples Rate This
फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी
अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला
दोनों चश्मों से मरी अश्क बहा करते हैं
नफ़्स नमरूद है क्या होना है
जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो
रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में
क़ैद-ए-मज़हब वाक़ई इक रोग ही
इन की मिज़ा है काबा-ए-अबरू में मोतकिफ़
अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया
देखिए आज वो तशरीफ़ कहाँ फ़रमाएँ
तिरी तलाश में मह की तरह मैं फिरता हूँ
का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर