देखिए आज वो तशरीफ़ कहाँ फ़रमाएँ
हम से वा'दा है जुदा ग़ैर से इक़रार जुदा
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ऐ सबा क़िल'अ-ए-हस्ती से जो दम घबराया
ख़ुद-रफ़्तगी है चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई
बाग़-ए-आलम में है बे-रंग बयान-ए-वाइ'ज़
बंदा अब ना-सुबूर होता है
आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना
रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में
आप ही अपने ज़रा जौर-ओ-सितम को देखें
आप को ग़ैर बहुत देखते हैं
आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा
साफ़ क़ुलक़ुल से सदा आती है आमीन आमीन
पाया है इस क़दर सुख़न-ए-सख़्त ने रिवाज
का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर