सनम Poetry (page 10)

हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

ये तमन्ना है कि इस तरह मुसलमाँ होता

फ़ना बुलंदशहरी

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

फ़ना बुलंदशहरी

तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जा

फ़ना बुलंदशहरी

निकले वो फूल बन के तिरे गुल्सिताँ से हम

फ़ना बुलंदशहरी

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया

फ़ना बुलंदशहरी

हुस्न-ए-बुताँ का इश्क़ मेरी जान हो गया

फ़ना बुलंदशहरी

हर घड़ी पेश-ए-नज़र इश्क़ में क्या क्या न रहा

फ़ना बुलंदशहरी

हाँ वही इश्क़-ओ-मोहब्बत की जिला होती है

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिल

फ़ना बुलंदशहरी

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

फ़ना बुलंदशहरी

दिल बुतों पे निसार करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके

फ़ना बुलंदशहरी

ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा

फ़ना बुलंदशहरी

अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है

फ़ना बुलंदशहरी

ज़िंदगी

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

टूटी जहाँ जहाँ पे कमंद

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लौह-ओ-क़लम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

सभी कुछ है तेरा दिया हुआ सभी राहतें सभी कुल्फ़तें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

किस हर्फ़ पे तू ने गोश-ए-लब ऐ जान-ए-जहाँ ग़म्माज़ किया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इज्ज़-ए-अहल-ए-सितम की बात करो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़्वाबों के सनम-ख़ाने जब ढाए गए होंगे

एज़ाज़ अफ़ज़ल

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

निगाह-ए-यार सूँ हासिल है मुझ कूँ मय-नोशी

दाऊद औरंगाबादी

मुझ साथ सैर-ए-बाग़ कूँ ऐ नौ-बहार चल

दाऊद औरंगाबादी

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