चलो चलें Poetry (page 11)

जुदाई भी क़राबत की तरह थी

हसन निज़ामी

मैं जनम जनम का अनीस हूँ किसी तौर दिल में बसा मुझे

हसन नईम

बिछ्ड़ें तो शहर भर में किसी को पता न हो

हसन नईम

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

क्या गुमाँ था कि न होगा कोई हम-सर अपना

हसन अकबर कमाल

हुनर जो तालिब-ए-ज़र हो हुनर नहीं रहता

हसन अकबर कमाल

मकीं यहीं का है लेकिन मकाँ से बाहर है

हसन अब्बास रज़ा

कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो

हरी चंद अख़्तर

दिल-ए-नादाँ पे शिकायत का गुमाँ क्या होगा

हनीफ़ फ़ौक़

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

देखने वाले को बाहर से गुमाँ होता नहीं

हामिद जीलानी

हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज

हमीद नागपुरी

उन की जफ़ाओं पर भी वफ़ा का हुआ गुमाँ

हमीद जालंधरी

कैसा ग़ज़ब ये ऐ दिल-ए-पुर-जोश कर दिया

हमीद जालंधरी

यक़ीन कैसे करूँगा गुमाँ में रहता हूँ

हमदम कशमीरी

वहम कोई गुमाँ में था ही नहीं

हमदम कशमीरी

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

मरता भला है ज़ब्त की ताक़त अगर न हो

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा

बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल

हकीम मंज़ूर

'हैरत' के दिल पे वार किया हाए क्या किया

हैरत गोंडवी

शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था

हैदर अली आतिश

हंगाम-ए-नज़'अ महव हूँ तेरे ख़याल का

हैदर अली आतिश

दहन पर हैं उन के गुमाँ कैसे कैसे

हैदर अली आतिश

आरिफ़ है वो जो हुस्न का जूया जहाँ में है

हैदर अली आतिश

आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था

हैदर अली आतिश

क़ासिद ख़िलाफ़-ए-ख़त कहीं तेरा बयाँ न हो

हफ़ीज़ जौनपुरी

हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे

हफ़ीज़ जौनपुरी

शाएर

हफ़ीज़ जालंधरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का

हफ़ीज़ जालंधरी

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