चलो चलें Poetry (page 3)

कहते हैं अज़ल जिस को उस से भी कहीं पहले

उनवान चिश्ती

थम ज़रा वक़्त-ए-अजल दीदार-ए-जाँ होने लगा

उम्मीद ख़्वाजा

कर अपनी बात कि प्यारे किसी की बात से क्या

उमर अंसारी

बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ

उमैर मंज़र

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

कितने ही तीर ख़म-ए-दस्त-ओ-कमाँ में होंगे

तौसीफ़ तबस्सुम

मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है

तसनीम आबिदी

किसी ने पूछा जो उम्र-ए-रवाँ के बारे में

तसनीम आबिदी

तेरी वफ़ा का हम को गुमाँ इस क़दर हुआ

तासीर सिद्दीक़ी

लहू को पालते फिरते हैं हम हिना की तरह

तारिक़ मसऊद

है किस का इंतिज़ार खुला घर का दर भी है

तारिक़ बट

सूरतों के शहर में रौज़न ही रौज़न देख कर

तनवीर सामानी

किस तरह उस को बुलाऊँ ख़ाना-ए-बर्बाद में

तनवीर अंजुम

नई ज़मीनों को अर्ज़-ए-गुमाँ बनाते हैं

तालीफ़ हैदर

एक एक क़तरा उस का शो'ला-फ़िशाँ सा है

तख़्त सिंह

शिकवा न हो तसलसुल-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ रहे

तजम्मुल हुसैन अख़्तर

ये लोग करते हैं मंसूब जो बयाँ तुझ से

तैमूर हसन

मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है

तैमूर हसन

यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है

ताबिश कमाल

एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा

ताबिश कमाल

यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है

ताबिश कमाल

तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

कोई भी नक़्श सलामत नहीं है चेहरे का

ताब असलम

अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं

तअशशुक़ लखनवी

कभी कभी तिरी चाहत पे ये गुमाँ गुज़रा

सय्यदा शान-ए-मेराज

जिस्म ओ जाँ सुलगते हैं बारिशों का मौसम है

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं

सय्यद ज़मीर जाफ़री

ज़मीन-ए-इश्क़ पे ऐ अब्र-ए-ए'तिबार बरस

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

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