चलो चलें Poetry (page 4)

मुशाएरा

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

दिल की धड़कन थम गई दर्द-ए-निहाँ बढ़ता गया

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

आसमाँ को ज़मीं बनाते हैं

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

ज़रा न हम पे किया ए'तिबार गुज़री है

सय्यद हामिद

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

पहले था मोहब्बत का गुमाँ सो वो यक़ीं है

सय्यद हामिद

ये अर्ज़-ए-शौक़ है आराइश-ए-बयाँ भी तो हो

सय्यद आबिद अली आबिद

हाए वो याद कहाँ है कि ख़ुदा ख़ैर करे

सुनील कुमार जश्न

अभी तक साँस लम्हे बुन रही है

सुलतान सुबहानी

अपनी ज़मीं से दूर ज़मान-ओ-मकाँ से दूर

सुलतान फ़ारूक़ी

वही बे-सबब से निशाँ हर तरफ़

सुल्तान अख़्तर

झूट रौशन है कि सच्चाई नहीं जानते हैं

सुल्तान अख़्तर

हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे

सुल्तान अख़्तर

शनाख़्त मिट गई चेहरे पे गर्द इतनी थी

सुलेमान ख़ुमार

नाज़-पर्वर्दा-ए-जहाँ तुम हो

सुलैमान अरीब

तुम्हें रो कर बताना चाहते हैं

सुहैल सानी

इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल

सुहैल अख़्तर

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

ज़मीं पे रहते हुए कहकशाँ से मिलते हैं

सिरज़ अालम ज़ख़मी

उस ने सोचा भी नहीं था कभी ऐसा होगा

सिद्दीक़ मुजीबी

ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा

सिद्दीक़ शाहिद

तंग आ गए हैं कश्मकश-ए-आशियाँ से हम

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

बे-सबब वो न मिरे क़त्ल की तदबीर में था

शऊर बलगिरामी

ज़लज़ला आया मकाँ गिरने लगा

शुमाइला बहज़ाद

सफ़र गुमाँ है रास्ता ख़याल है

शुमाइला बहज़ाद

वो और होंगे जो वहम-ओ-गुमाँ के साथ चले

शोला हस्पानवी

लबों पे अब कोई आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं होती

शोला हस्पानवी

दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा

शोला अलीगढ़ी

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