चलो चलें Poetry (page 6)

हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए

शहज़ाद नय्यर

दिल ओ नज़र पे तिरे बाद क्या नहीं गुज़रा

शहज़ाद अहमद

दिल रिझा है तुझ पे ऐसा बद-गुमाँ होगा नहीं

शहरयार

फ़ैसले की घड़ी

शहरयार

हुआ सरकश अंधेरा सख़्त-जाँ है

शहनाज़ नबी

उस की आँखों में मोहब्बत का गुमाँ तक नहीं आज

शहनवाज़ ज़ैदी

सितारा-चश्म है और मेहरबाँ है

शाहिदा हसन

सीने की मिसाल आग है चाँदी सा धुआँ है

शाहिद शैदाई

शिकस्ता जिस्म दरीदा जबीन की जानिब

शाहिद कमाल

जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है

शाहिद कलीम

मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह

शाहिद इश्क़ी

हर मर्ग-ए-आरज़ू का निशाँ देर तक रहा

शाहिद इश्क़ी

ज़रूरत क्या है

शाहीन मुफ़्ती

थी कुछ न ख़ता फिर भी पशेमान रहे हैं

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

बदन-दरीदा-ओ-बे-बर्ग-ओ-बार होना भी

शाह हुसैन नहरी

है फ़ना बिस्मिल्लाह-ए-दीवान-ए-इश्क़

शाह आसिम

ब-चशम-ए-हक़ीक़त जहाँ देखता हूँ

शाह आसिम

वफ़ा के दाग़ को दिल से मिटा नहीं सकता

शाग़िल क़ादरी

ये क्या कि मेरे यक़ीं में ज़रा गुमाँ भी है

शफ़क़ सुपुरी

मुझे किसी पे मोहब्बत का कुछ गुमाँ सा है

शफ़क़ सुपुरी

कुछ सबील-ए-रिज़्क़ हो फिर कहीं मकाँ भी हो

शफ़क़ सुपुरी

ऐ बद-गुमाँ तिरा है गुमाँ और की तरफ़

शाद लखनवी

वो मज़ा रखते हैं कुछ ताज़ा फ़साने अपने

शानुल हक़ हक़्क़ी

वो कहाँ वक़्त कि मोड़ेंगे इनाँ और तरफ़

शानुल हक़ हक़्क़ी

नग़्मा यूँ साज़ में तड़पा मिरी जाँ हो जैसे

शानुल हक़ हक़्क़ी

बदल के भेस वो चेहरा कहाँ कहाँ न मिला

सय्यद एहतिशाम हुसैन

ग़ुलाम वहम ओ गुमाँ का नहीं यक़ीं का हूँ

सय्यद नसीर शाह

तो क्या

सय्यद अयाज़ महमूद

समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत

मोहम्मद रफ़ी सौदा

बहार-ए-गुल से अब दौर-ए-ख़िज़ाँ तक

सत्यपाल जाँबाज़

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