चलो चलें Poetry (page 7)

इक राज़-ए-दिलरुबा को बयाँ होना है अभी

सत्तार सय्यद

ज़मानों से दर-ए-इम्कान पर रक्खे हुए हैं

सरवर अरमान

ख़्वाब-ज़ादों का दुख ज़मीनी है

सरफ़राज़ ज़ाहिद

हक़-नवाई को ज़माने की ज़बाँ कौन करे

समद अंसारी

मय-कशी छोड़ दी तौहीन-ए-हुनर कर आया

सलमान अंसारी

उसे भुला न सकी नक़्श इतने गहरे थे

सलमा शाहीन

बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है

सालिम सलीम

मिरे वहम-ओ-गुमाँ से भी ज़ियादा टूट जाता है

सलीम साग़र

मुझ ना-तवाँ पे हश्र में वहम-ए-फुग़ाँ ग़लत

सालिक देहलवी

रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था

सलीम शहज़ाद

बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है

सलीम शहज़ाद

दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया

सलीम शाहिद

कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है

सलीम कौसर

मेरी ग़ज़ल में एक नया सोज़-ए-जाँ भी है

सलीम अहमद

मंज़िल-ए-बे-जहत की ख़ैर सई-ए-सफ़र है राएगाँ

सलीम अहमद

एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई

सलीम अहमद

बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है

सलीम अहमद

जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं

सज्जाद बाक़र रिज़वी

दिल है तो मुक़ामात-ए-फुग़ाँ और भी होंगे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

रहीन-ए-ख़्वाब हूँ और ख़्वाब के मकाँ में हूँ

सज्जाद बलूच

रहीन-ए-ख़्वाब हूँ और ख़्वाब के मकाँ में हूँ

सज्जाद बलूच

वफ़ा-ओ-मेहर-ओ-अल्ताफ़-ओ-करम थे हम-इनाँ क्या क्या

साजिदा ज़ैदी

हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

मिला न दैर-ओ-हरम में कहीं निशाँ उन का

सैफ़ बिजनोरी

गाँधी

साहिर होशियारपुरी

अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है

साहिर होशियारपुरी

तिरे सिवा मिरी हस्ती कोई जहाँ में नहीं

साहिर देहल्वी

शब-ए-सुरूर नई दास्ताँ विसाल-ओ-फ़िराक़

सहबा वहीद

मैं उसे समझूँ न समझूँ दिल को होता है ज़रूर

सहबा अख़्तर

मुझ पे ऐसा कोई शे'र नाज़िल न हो

सहबा अख़्तर

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