मैं उसे समझूँ न समझूँ दिल को होता है ज़रूर
लाला ओ गुल पर गुमाँ इक अजनबी तहरीर का
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(572) Peoples Rate This
ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे
मिरी तन्हाइयों को कौन समझे
मुझ पे ऐसा कोई शे'र नाज़िल न हो
जिसे लिख लिख के ख़ुद भी रो पड़ा हूँ
सुबूत माँग रहे हैं मिरी तबाही का
मैं बहारों के रूप में गुम था
कुल जहाँ इक आईना है हुस्न की तहरीर का
पागल औरत
हमें ख़बर है ज़न-ए-फ़ाहिशा है ये दुनिया
हर रात का ख़्वाब
शायद वो संग-दिल हो कभी माइल-ए-करम