मेरे सुख़न की दाद भी उस को ही दीजिए
वो जिस की आरज़ू मुझे शाएर बना गई
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इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं
यूँ भी हुआ इक अर्से तक इक शे'र न मुझ से तमाम हुआ
मिरी तन्हाइयों को कौन समझे
मुझे मिला वो बहारों की सरख़ुशी के साथ
फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे
असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया
मैं उसे समझूँ न समझूँ दिल को होता है ज़रूर
हर रात का ख़्वाब
साँप सपेरा और मैं
आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ