दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो

दर्द को ज़ब्त की सरहद से गुज़र जाने दो

अब समेटो न हमें और बिखर जाने दो

हम से होगा न कभी अपनी ख़ुदी का सौदा

हम अगर दिल से उतरते हैं उतर जाने दो

तुम तअ'य्युन न करो अपनी हदों का हरगिज़

जब भी जैसे भी जहाँ जाए नज़र जाने दो

इतना काफ़ी है कि वो साथ नहीं है मेरे

क्यूँ हुआ कैसे हुआ चाक जिगर जाने दो

दिल जलाओ कि तख़य्युल का जहाँ रौशन हो

तीरगी ख़त्म करो रात सँवर जाने दो

इश्क़ सानी है तो फिर उस में शिकायत कैसी

हम न कहते थे कि इक ज़ख़्म है भर जाने दो

यार मा'मूल पे लौट आएँगे कुछ सब्र करो

उस फ़ुसूँ-गर की निगाहों का असर जाने दो

शर्त जीना है भटकना तो बहाना है फ़क़त

वो जिधर जाता है हर शाम-ओ-सहर जाने दो

मैं ने रोका था उसे इस का हवाला दे कर

रूठ कर फिर भी वो जाता है अगर जाने दो

ख़ुश-गुमाँ है वो बहुत जीत पे अपनी 'ज़ाकिर'

हम भी चल सकते थे इक चाल मगर जाने दो

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