सामान-ए-दिल को बे-सर-ओ-सामानियाँ मिलीं
कुछ और भी जवाब थे मेरे सवाल के
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
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Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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ख़्वाहिश में सुकूँ की वही शोरिश-तलबी है
सर से जुनून-ए-इश्क़ का सौदा निकालिए
राहों के ऊँच-नीच ज़रा देख-भाल के
ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है
बे-दिली वो है कि मरने की तमन्ना भी नहीं
ज़ख़्म खुले पड़ते हैं दिल के मौसम है ये बहारों का
इस दिल को क्या कहें कि जिधर था उधर न था
छलकी हर मौज-ए-बदन से हुस्न की दरिया-दिली
मैं हम-नफ़साँ जिस्म हूँ वो जाँ की तरह था
मैं सरगिराँ था हिज्र की रातों के क़र्ज़ से
'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो
चाहत जी का रोग है प्यारे जी को रोक लगाओ क्यूँ