क्या क्या न तिरे शौक़ में टूटे हैं यहाँ कुफ़्र
क्या क्या न तिरी राह में ईमान गए हैं
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मन धन सब क़ुर्बान किया अब सर का सौदा बाक़ी है
छलकी हर मौज-ए-बदन से हुस्न की दरिया-दिली
जहाँ में रह के भी हम कब जहाँ में रहते हैं
दीवार क़हक़हा
'बाक़र' निशाना-ए-ग़म-ओ-रंज-ओ-अलम तो हो
दिल ख़ूँ हुआ है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना के साथ
सर से जुनून-ए-इश्क़ का सौदा निकालिए
सोए हुओं में ख़्वाब से बेदार कौन है
जुर्म-ए-इज़हार-ए-तमन्ना आँख के सर आ गया
हमारे दम से है रौशन दयार-ए-फ़िक्र-ओ-सुख़न
घिरते बादल में तन्हाई कैसी लगती है
ख़्वाहिश में सुकूँ की वही शोरिश-तलबी है