गुबार Poetry (page 8)

बैठे हैं ऐसे ज़ुल्फ़ में कलियाँ सँवार के

साग़र ख़य्यामी

नज़्म

सफ़िया अरीब

किस मुँह से ज़िंदगी को वो रख़्शंदा कह सकें

सादिक़ नसीम

दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता

सदा अम्बालवी

यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके

साबिर ज़फ़र

मैं जिस के साथ 'ज़फ़र' उम्र भर उठा बैठा

साबिर ज़फ़र

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

साबिर

ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या

सादुल्लाह शाह

किसी भी वहम को ख़ुद पर सवार मत करना

सादुल्लाह शाह

उसी हसीं से चमन में बहार आज भी है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

रू-ए-ज़मीं नहीं कि सर-ए-आसमाँ नहीं

रोहित सोनी ‘ताबिश’

ख़ुद अपना इंतिज़ार भी

रियाज़ लतीफ़

ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में

रियाज़ लतीफ़

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

रिन्द लखनवी

गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें

रिन्द लखनवी

एक बे-रंग से ग़ुबार में हूँ

रिफ़अत सरोश

हम सकूँ पाएँगे सलमाओं में क्या

रज़ा हमदानी

नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं

रविश सिद्दीक़ी

कहने को सब फ़साना-ए-ग़ैब-ओ-शुहूद था

रविश सिद्दीक़ी

ब-नाम-ए-पैकर-ख़ाकी न गर्द बन जाओ

रौनक़ दकनी

नज़र में धूल फ़ज़ा में ग़ुबार चारों तरफ़

राशिद अनवर राशिद

मुंजमिद आख़िर है क्यूँ ता-हद्द-ए-मंज़र फैल जा

राशिद अनवर राशिद

यूँ गँवाता है कोई जान-ए-अज़ीज़

रसा चुग़ताई

तेरे आने का इंतिज़ार रहा

रसा चुग़ताई

हर चीज़ से मावरा ख़ुदा है

रसा चुग़ताई

ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका

राना आमिर लियाक़त

सियाह-ख़ाना-ए-उम्मीद-ए-राएगाँ से निकल

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मैं चुप खड़ा था तअल्लुक़ में इख़्तिसार जो था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

हमें लपकती हवा पर सवार ले आई

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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