उल्फ़त-ए-कूचा-ए-जानाँ ने किया ख़ाना-ख़राब
बरहमन दैर से का'बे से मुसलमाँ निकला
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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अब तो साहब की हुई ख़ातिर जम्अ'
चश्म वा रह गई देखा जो तिलिस्मात-ए-जहाँ
नफ़्स नमरूद है क्या होना है
मादूम हुए जाते हैं हम फ़िक्र के मारे
महशर का हमें क्या ग़म इस्याँ किसे कहते हैं
फ़स्ल-ए-गुल ही ज़ाहिदों को ग़म ही मय-कश शाद हैं
न पढ़ा यार ने अहवाल-ए-शिकस्ता मेरा
बात भी आप के आगे न ज़बाँ से निकली
इश्क़ का इख़्तिताम करते हैं
अश्क-उफ़्तादा नज़र आते हैं सारे दरिया
आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा