बात भी आप के आगे न ज़बाँ से निकली
लीजिए आए थे हम सोच के क्या क्या दिल में
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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जब उस बे-मेहर को ऐ जज़्ब-ए-दिल कुछ जोश आता है
हम भी ज़रूर कहते किसी काम के लिए
आई ऐ गुल-एज़ार क्या कहना
दश्त-ए-जुनूँ में आ गईं आँखें जो उन की याद
बाक़ी रहा न फ़र्क़ ज़मीन आसमान में
हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-ए-नाक़ूस सुना
ताइर-ए-अक़्ल को मा'ज़ूर कहा ज़ाहिद ने
चश्म वा रह गई देखा जो तिलिस्मात-ए-जहाँ
कोई सूरत से गर सफ़ा हो
वाइ'ज़ के मैं ज़रूर डराने से डर गया
क्या बनाया है बुतों ने मुझ को
का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर