है ख़बर गर्म उन के आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
नशा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से
तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम
बात पर वाँ ज़बान कटती है
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए