अमकां Poetry (page 6)

रुख़्सत-ए-रक़्स भी है पाँव में ज़ंजीर भी है

अख़्तर होशियारपुरी

तमाम आलम-ए-इम्काँ मिरे गुमान में है

अकबर हमीदी

इल्म की ज़रूरत

अहमक़ फफूँदवी

कुछ शफ़क़ डूबते सूरज की बचा ली जाए

अहमद शनास

हैं शाख़ शाख़ परेशाँ तमाम घर मेरे

अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी

हम को आवारगी किस दश्त में लाई है कि अब

अहमद महफ़ूज़

लोग कहते थे वो मौसम ही नहीं आने का

अहमद महफ़ूज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए

अहमद फ़राज़

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

दिल था कि ग़म-ए-जाँ था

आग़ाज़ बरनी

अगर कुछ ए'तिबार-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो

आग़ाज़ बरनी

उन से हर हाल में तुम सिलसिला-जुम्बाँ रखना

अफ़सर माहपुरी

गुम-शुदा

अबरार आज़मी

वहीं से हद मिली है जा पहुँचता कू-ए-जानाँ तक

अब्र अहसनी गनौरी

नए हैं वस्ल के मौसम मोहब्बतें भी नई

अब्दुल वहाब सुख़न

महक रहा है तसव्वुर में ख़्वाब की सूरत

अब्दुल वहाब सुख़न

चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे

अब्दुल मजीद सालिक

मुतज़ाद ज़ाविए

अब्दुल अहद साज़

इंतिज़ार बाक़ी है

अब्दुल अहद साज़

औज-बिन-उनुक़

अब्दुल अहद साज़

मुझे रस्ता नहीं मिलता

अब्बास ताबिश

तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता

अब्बास ताबिश

अब अधूरे इश्क़ की तकमील ही मुमकिन नहीं

अब्बास ताबिश

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