मौज Poetry (page 17)

वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है

गुलज़ार देहलवी

आँधी में बिसात उलट गई है

गुलज़ार बुख़ारी

सबात

गुलज़ार

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ग़म नहीं जो लुट गए हम आ के मंज़िल के क़रीब

गुहर खैराबादी

क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

जो शुआ-ए-लब है मौज-ए-नौ-बहार-ए-नग़्मा है

गोपाल मित्तल

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

दूरी में क्यूँ कि हो न तमन्ना हुज़ूर की

ग़ुलाम मौला क़लक़

क़र्या-ए-हैरत में दिल का मुस्तक़र इक ख़्वाब है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नहीं अब रोक पाएगी फ़सील-ए-शहर पानी को

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे नज्म-ए-ख़्वाब के रू-ब-रू कोई शय नहीं मिरे ढंग की

ग़ुलाम हुसैन साजिद

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अगर ये रंगीनी-ए-जहाँ का वजूद है अक्स-ए-आसमाँ से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

साज़-ए-हयात क़ैद-ओ-सलासिल कहें किसे

ग़यास अंजुम

साबित हुआ है गर्दन-ए-मीना पे ख़ून-ए-ख़ल्क़

ग़ालिब

मोहब्बत थी चमन से लेकिन अब ये बे-दिमाग़ी है

ग़ालिब

है मुश्तमिल नुमूद-ए-सुवर पर वजूद-ए-बहर

ग़ालिब

दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग

ग़ालिब

यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का

ग़ालिब

सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर

ग़ालिब

शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया

ग़ालिब

शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था

ग़ालिब

सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए

ग़ालिब

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