मौज Poetry (page 19)

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

जुरअत-ए-इश्क़ हवस-कार हुई जाती है

फ़िगार उन्नावी

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

सवाल सख़्त था दरिया के पार उतर जाना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

फ़े सीन एजाज़

ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया

फ़ातिमा हसन

किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है

फ़सीह अकमल

मुझे खोल ताज़ा हवा में रख

फर्रुख यार

वक़्त इक मौज है आता है गुज़र जाता है

फ़ारूक़ शमीम

सिलसिले ख़्वाब के अश्कों से सँवरते कब हैं

फ़ारूक़ शमीम

नज़्म

फ़ारूक़ मुज़्तर

आँखों में मौज मौज कोई सोचने लगा

फ़ारूक़ मुज़्तर

ग़म-ए-इश्क़ ही ने काटी ग़म-ए-इश्क़ की मुसीबत

फ़ारूक़ बाँसपारी

कभी बे-नियाज़-ए-मख़्ज़न कभी दुश्मन-ए-किनारा

फ़ारूक़ बाँसपारी

जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

राज़ उबल पड़े आख़िर आसमाँ के सीनों से

फ़रहत क़ादरी

तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

सिकंदर हूँ तलाश-ए-आब-ए-हैवाँ रोज़ करता हूँ

फ़रीद परबती

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

ना-शगुफ़्ता कलियों में शौक़ है तबस्सुम का

फ़रीद जावेद

मिरे हम-रक़्स साए को बिल-आख़िर यूँही ढलना था

फ़रह इक़बाल

जब सफ़ीना मौज से टकरा गया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

जब भी नज़्म-ए-मै-कदा बदला गया

फ़ना निज़ामी कानपुरी

सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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