अब उस से बढ़ के भला मो'तबर कहें किस को
ज़माना उस का है माज़ी-ओ-हाल उस के हैं
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मोहब्बत का अजब ज़ाविया है
उम्र सारी यूँही गुज़ारी है
साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में
खिलने लगे हैं फूल और पत्ते हरे हुए
चुप हैं हुज़ूर मुझ से कोई बात हो गई
उस की आँखें हरे समुंदर उस की बातें बर्फ़
अनीस-ए-जाँ हैं अभी तक निशानियाँ उस की
कभी शाम-ए-हिज्र गुज़ारते कभी ज़ुल्फ़-ए-यार सँवारते
ये उस के प्यार की बातें फ़क़त क़िस्से पुराने हैं
कभी किताबों में फूल रखना कभी दरख़्तों पे नाम लिखना
सूरत है वो ऐसी कि भुलाई नहीं जाती