शाम Poetry (page 70)

वो अबरू याद आते हैं वो मिज़्गाँ याद आते हैं

अब्दुल हमीद अदम

ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया

अब्दुल हमीद अदम

ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ

अब्दुल हमीद अदम

दुआएँ दे के जो दुश्नाम लेते रहते हैं

अब्दुल हमीद अदम

भूले से कभी ले जो कोई नाम हमारा

अब्दुल हमीद अदम

बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा

अब्दुल हमीद अदम

उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया

अब्दुल हमीद

किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही

अब्दुल हमीद

किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्या

अब्दुल हमीद

अजीब शय है कि सूरत बदलती जाती है

अब्दुल हमीद

ग़ुबार-ए-दर्द से सारा बदन अटा निकला

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

फूली है शफ़क़ गो कि अभी शाम नहीं है

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात

अब्दुल अहद साज़

बम्बई की एक पुरानी शाम

अब्दुल अहद साज़

अलविदा

अब्दुल अहद साज़

ज़िक्र हम से बे-तलब का क्या तलबगारी के दिन

अब्दुल अहद साज़

तब-ए-हस्सास मिरी ख़ार हुई जाती है

अब्दुल अहद साज़

मिरी निगाहों पे जिस ने शाम ओ सहर की रानाइयाँ लिखी हैं

अब्दुल अहद साज़

जाने क़लम की आँख में किस का ज़ुहूर था

अब्दुल अहद साज़

दरख़्त रूह के झूमे परिंद गाने लगे

अब्दुल अहद साज़

बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की गिरहें खोलें

अब्दुल अहद साज़

परों में शाम ढलती है

अब्बास ताबिश

मुझे रस्ता नहीं मिलता

अब्बास ताबिश

अँदेशा-ए-विसाल की एक नज़्म

अब्बास ताबिश

अधूरी नज़्म

अब्बास ताबिश

ये हम को कौन सी दुनिया की धुन आवारा रखती है

अब्बास ताबिश

साँस के हम-राह शो'ले की लपक आने को है

अब्बास ताबिश

रातें गुज़ारने को तिरी रहगुज़र के साथ

अब्बास ताबिश

मैं अपने इश्क़ को ख़ुश-एहतिमाम करता हुआ

अब्बास ताबिश

हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है

अब्बास ताबिश

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