शाम Poetry (page 71)

हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है

अब्बास ताबिश

दहन खोलेंगी अपनी सीपियाँ आहिस्ता आहिस्ता

अब्बास ताबिश

बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ

अब्बास ताबिश

धुआँ सा फैल गया दिल में शाम ढलते ही

अब्बास रिज़वी

हालत-ए-हाल से बेगाना बना रक्खा है

अब्बास क़मर

चुप-चाप गुज़र जाओ

अब्बास अतहर

अपने चेहरे से जो ज़ुल्फ़ों को हटाया उस ने

अातिश बहावलपुरी

ज़िंदगी गुज़री मिरी ख़ुश्क शजर की सूरत

अातिश बहावलपुरी

तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

गुफ़्तुगू करने लगे रेत के अम्बार के साथ

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

मानूस हो गए हैं ग़म-ए-ज़िंदगी से हम

आसी रामनगरी

वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो

आसी ग़ाज़ीपुरी

वहाँ पहुँच के ये कहना सबा सलाम के बाद

आसी ग़ाज़ीपुरी

कोई ग़ुल हुआ था न शोर-ए-ख़िज़ाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली

आनिस मुईन

ये क़र्ज़ तो मेरा है चुकाएगा कोई और

आनिस मुईन

वो कुछ गहरी सोच में ऐसे डूब गया है

आनिस मुईन

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

रोज़ ख़्वाबों में आ के चल दूँगा

आलोक श्रीवास्तव

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

वो कहते हैं उट्ठो सहर हो गई

आग़ा अकबराबादी

मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त

आग़ा अकबराबादी

जो अश्क बन के हमारी पलक पे बैठा था

आदिल रज़ा मंसूरी

दिन के सीने पे शाम का पत्थर

आदिल रज़ा मंसूरी

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