शाम Poetry (page 33)
तसव्वुरात में वो ज़ूम कर रहा था मुझे
इनआम आज़मी
वो संगलाख़ ज़मीनों में शेर कहता था
इम्तियाज़ साग़र
हम न दुनिया के हैं न दीं के हैं
इमरान-उल-हक़ चौहान
गाम गाम ख़्वाहिशें
इमरान शनावर
वो शाम ढले तेरा मिलना वो तेरा हँसाना याद नहीं
इमरान साग़र
कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को
इमरान आमी
लोग जब तेरा नाम लेते हैं
इम्दाद इमाम असर
रौशन हज़ार चंद हैं शम्स-ओ-क़मर से आप
इमदाद अली बहर
गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं
इमदाद अली बहर
फ़ुर्क़त की आफ़त बुरे दिन काटना साल है
इमदाद अली बहर
बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का
इमदाद अली बहर
आज की शाम गुज़ारेंगे हम छतरी में
इलियास बाबर आवान
हमारे दिन गुज़र गए
इलियास बाबर आवान
दो उम्रों की रुई धुन कर आया हूँ
इलियास बाबर आवान
क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद
इकराम जनजुआ
इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
इफ़्तिख़ार क़ैसर
हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए
इफ़्तिख़ार क़ैसर
यूँ है तिरी तलाश पे अब तक यक़ीं मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
भर आईं आँखें किसी भूली याद से शाम के मंज़र में
इफ़्तिख़ार बुख़ारी
बनती है सँवरती है बिखर जाती है दुनिया
इफ़्तिख़ार बुख़ारी
सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में
इफ़्तिख़ार आरिफ़
पुराने दुश्मन
इफ़्तिख़ार आरिफ़
पस च-बायद-कर्द
इफ़्तिख़ार आरिफ़
गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
बैलन्स-शीट
इफ़्तिख़ार आरिफ़
बदन-दरीदा रूहों के नाम एक नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
सर-ए-बाम-ए-हिज्र दिया बुझा तो ख़बर हुई
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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