शाम Poetry (page 34)

समझ रहे हैं मगर बोलने का यारा नहीं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ौफ़ के सैल-ए-मुसलसल से निकाले मुझे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला

इफ़्तिख़ार आरिफ़

दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तसव्वुर

इफ़्तिख़ार आज़मी

दर्द का दिल का शाम का बज़्म का मय का जाम का

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

इस से पहले कि ज़मीं-ज़ाद शरारत कर जाएँ

इदरीस बाबर

दिल में है इत्तिफ़ाक़ से दश्त भी घर के साथ साथ

इदरीस बाबर

अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता

इदरीस बाबर

'मीर' से बैअत की है तो 'इंशा' मीर की बैअत भी है ज़रूर

इब्न-ए-इंशा

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

लोग पूछेंगे

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

एक बार कहो तुम मेरी हो

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है

इब्न-ए-इंशा

हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

माहौल से जैसे कि घुटन होने लगी है

हुसैन ताज रिज़वी

ढली जो शाम नज़र से उतर गया सूरज

हुसैन ताज रिज़वी

साँस भर हवा

हुसैन आबिद

वक़्त गर्दिश में ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि जो था

हुरमतुल इकराम

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