शाम Poetry (page 37)

मिरी हयात अगर मुज़्दा-ए-सहर भी नहीं

हनीफ़ फ़ौक़

अभी न जाओ अभी रास्ते सजे भी नहीं

हनीफ़ असअदी

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

आख़िरी बार मैं कब उस से मिला याद नहीं

हम्माद नियाज़ी

सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ

हम्माद नियाज़ी

जिस की सौंधी सौंधी ख़ुशबू आँगन आँगन पलती थी

हम्माद नियाज़ी

जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थी

हम्माद नियाज़ी

मलाल ज़र्द-क़बाई को धो रहा होगा

हमीदा शाहीन

कितने ग़म हैं जो सर-ए-शाम सुलग उठते हैं

हामिद सरोश

साँस लेने के लिए ताज़ा हवा भेजी है

हामिद सरोश

चाहे कुछ हो ज़ेर-ए-एहसाँ अपनी नादारी न रख

हामिद मुख़्तार हामिद

सुब्ह भी अपनी शाम भी अपनी

हामिद इलाहाबादी

सुब्ह चले तो ज़ौक़-ए-तलब था अर्श-निशाँ ख़ुर्शीद-शिकार

हमीद नसीम

सवाल दिल का शाम-ए-ग़म को और उदास कर गया

हमीद नसीम

वो चाल चल कि ज़माना भी साथ चलने लगे

हमीद नागपुरी

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था

हमीद जालंधरी

शहर-ए-आरज़ू

हमीद अलमास

सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे

हमीद अलमास

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

यक़ीन कैसे करूँगा गुमाँ में रहता हूँ

हमदम कशमीरी

है मशक़्क़त मिरी इनआ'म किसी और का है

हमदम कशमीरी

वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'

हकीम नासिर

मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी

हकीम नासिर

ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए

हकीम नासिर

वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने

हकीम मंज़ूर

आग जो बाहर है पहुँचेगी अंदर भी

हकीम मंज़ूर

बहिश्त-ए-बरीँ

हाजी लक़ लक़

क्या उन को दिल का हाल सुनाने से फ़ाएदा

हाजी लक़ लक़

अस्र-ए-जदीद आया बड़ी धूम-धाम से

हैदर अली जाफ़री

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