कितने ग़म हैं जो सर-ए-शाम सुलग उठते हैं
कितने ग़म हैं जो सर-ए-शाम सुलग उठते हैं
चारा-गर तू ने ये किस दुख की दवा भेजी है
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चारा-गर तू ने ये किस दुख की दवा भेजी है
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