शाम Poetry (page 39)

तेज़ चलो

हबीब जालिब

मता-ए-ग़ैर

हबीब जालिब

लायल-पूर

हबीब जालिब

जम्हूरियत

हबीब जालिब

उस गली के लोगों को मुँह लगा के पछताए

हबीब जालिब

शहर वीराँ उदास हैं गलियाँ

हबीब जालिब

लोग गीतों का नगर याद आया

हबीब जालिब

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत

हबीब जालिब

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी

हबीब जालिब

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

हबीब जालिब

चूर था ज़ख़्मों से दिल ज़ख़्मी जिगर भी हो गया

हबीब जालिब

भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे

हबीब जालिब

बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी

हबीब जालिब

क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा

हबीब मूसवी

जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले

हबीब मूसवी

जिस को देखो शाम-सवेरे बे-कल है

हबीब कैफ़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उमीद-ओ-बीम के आलम में दिल दहलता है

हबाब हाश्मी

ज़ाहिर मुसाफ़िरों का हुनर हो नहीं रहा

गुलज़ार बुख़ारी

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

तआक़ुब

गुलज़ार

हिरासत

गुलज़ार

ग़ालिब

गुलज़ार

ग़ालिब

गुलज़ार

दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म

गुलज़ार

काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी

गुलज़ार

याद नहीं है

गुलनाज़ कौसर

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है

गुलनार आफ़रीन

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