शाम Poetry (page 38)

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

हैदर अली आतिश

वो नाज़नीं ये नज़ाकत में कुछ यगाना हुआ

हैदर अली आतिश

क़द-ए-सनम सा अगर आफ़रीदा होना था

हैदर अली आतिश

नाज़-ओ-अदा है तुझ से दिल-आराम के लिए

हैदर अली आतिश

मय-ए-गुल-रंग से लबरेज़ रहें जाम सफ़ेद

हैदर अली आतिश

कौन से दिल में मोहब्बत नहीं जानी तेरी

हैदर अली आतिश

काम हिम्मत से जवाँ मर्द अगर लेता है

हैदर अली आतिश

जौहर नहीं हमारे हैं सय्याद पर खुले

हैदर अली आतिश

दिल-लगी अपनी तिरे ज़िक्र से किस रात न थी

हैदर अली आतिश

बला-ए-जाँ मुझे हर एक ख़ुश-जमाल हुआ

हैदर अली आतिश

आइना-ख़ाना करेंगे दिल-ए-नाकाम को हम

हैदर अली आतिश

ये दिल है मिरा या किसी कुटिया का दिया है

हफ़ीज़ ताईब

इक दर्द सा पहलू में मचलता है सर-ए-शाम

हफ़ीज़ ताईब

यही मसअला है जो ज़ाहिदो तो मुझे कुछ इस में कलाम है

हफ़ीज़ जौनपुरी

सुब्ह को आए हो निकले शाम के

हफ़ीज़ जौनपुरी

इधर होते होते उधर होते होते

हफ़ीज़ जौनपुरी

हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की

हफ़ीज़ जौनपुरी

दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया

हफ़ीज़ जौनपुरी

उन को जिगर की जुस्तुजू उन की नज़र को क्या करूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

ये दिलकशी कहाँ मिरी शाम-ओ-सहर में थी

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना

हफ़ीज़ होशियारपुरी

अब कोई आरज़ू नहीं शौक़-ए-पयाम के सिवा

हफ़ीज़ होशियारपुरी

मुद्दत की तिश्नगी का इनआ'म चाहता हूँ

हफ़ीज़ बनारसी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी

जो पर्दों में ख़ुद को छुपाए हुए हैं

हफ़ीज़ बनारसी

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है

हफ़ीज़ बनारसी

तुम्हारे गाँव से जो रास्ता निकलता है

हबीब तनवीर

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

हबीब जालिब

उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो

हबीब जालिब

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