वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
ज़िंदगी अपनी उसी शाम से आगे न बढ़ी
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जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी