दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आँसू
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आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो