आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
इस क़दर घर में कभी भी रौशनी देखी न थी
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तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं