आसान किस क़दर है समझ लो मिरा पता
बस्ती के बाद पहला जो वीराना आएगा
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मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया