ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए
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हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
जब भी जलेगी शम्अ तो परवाना आएगा
घर में जो इक चराग़ था तुम ने उसे बुझा दिया
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ
उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत
आँखों ने हाल कह दिया होंट न फिर हिला सके
वो मुझे छोड़ के इक शाम गए थे 'नासिर'
जिस ने भी मुझे देखा है पत्थर से नवाज़ा
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है