मय-कशी गर्दिश-ए-अय्याम से आगे न बढ़ी
मेरी मदहोशी मिरे जाम से आगे न बढ़ी
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जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
आसान किस क़दर है समझ लो मिरा पता
पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू
वो जो कहता था कि 'नासिर' के लिए जीता हूँ
ये तमाशा भी अजब है उन के उठ जाने के बाद
इस राह-ए-मोहब्बत में तो आज़ार मिले हैं
ऐ दोस्त कहीं तुझ पे भी इल्ज़ाम न आए
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी